..जाति-पाति पूछे ना कोय
जाति-पाति पूछे ना कोय, हरि को भजे सो हरि को होय.. महान संत कबीर दास का यह दोहा पंजाब के बठिंडा शहर से 25 किलोमीटर दूर स्थित गांव गहरी बारां सिंह पर सटीक बैठता है। ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव के लोग जाति-पाति की संकीर्ण सोच से कोसों दूर है। स्थिति यह है कि यहां गांव में खेल रहा युवक अपना नाम तो गुरमीत बताता है, लेकिन जाति पूछने पर वह अनभिज्ञता जता देता है। गांव की साक्षरता दर भी काफी ज्यादा है। गांव में जाति-पाति को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ। जातीय सद्भाव के उदाहरण तो बहुत मिल सकते हैं, लेकिन गांव गहरी बारां सिंह में तो मानो जातियां है ही नहीं। जाति के नाम पर राजनीति करने वाले दलों और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वालों के लिए यह गांव किसी मिसाल से कम नहीं। होली का रंग हो या नए साल की उमंग या फिर दीवाली की आतिशबाजियां, सभी समुदायों के लोग मिलकर जश्न मनाते हैं। जट्ट जमींदारों पर कभी कोई संकट आया तो दलित समुदाय ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया। मुश्किल घड़ी में जमींदार भी दलितों का साथ देने में पीछे नहीं रहे। गांव में सरपंच की जनरल सीट पर दलित समुदाय के गुरजीत सिंह उर्फ तोता को चुना गया है। पूर्व सरपंच मिट्ठू सिंह कहते हैं कि यहां कोई एक-दूसरे की जाति नहीं पूछता, इसलिए छुआछूत का सवाल नहीं उठता। पूर्व सरपंच मुख्तियार सिंह के मुताबिक काम के मुद्दे पर भले ही ग्रामीणों के वैचारिक मतभेद हों, लेकिन जाति के प्रति कभी किसी पर कोई टिप्पणी नहीं की जाती। गुरुद्वारा बाबा जीवन सिंह जी प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष व गांव के नंबरदार भीम सिंह कहते हैं कि जातीय विवादों से ऊपर उठकर ही गांव के युवक शिक्षा हासिल कर फौज व पुलिस में सेवाएं दे रहे हैं। इसी गांव के दलित सेना व लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किरनजीत सिंह गहरी कहते हैं कि ऐसे कई मामले हुए हैं जब जट्ट-जमींदार घरेलू परेशानियों के कारण पुलिस के चक्कर में फंसे हों, ऐसे में पूरे दलित समुदाय ने उनकी मदद की। दलित सेना के युवा प्रदेश अध्यक्ष जगदीप सिंह गहरी कहते हैं कि हर वर्ष फरवरी के आरंभ में गुरुद्वारा बाबा जीवन सिंह जी में अखंड पाठ रखा जाता है। इस दौरान गांव का हर व्यक्ति जाति-पाति से ऊपर उठकर शामिल होता है।
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