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ये कैचियां हमें उड़ने से क्या रोकेंगी, हम पंखों से नहीं हौंसलों से उड़ान भरते हैं, कुछ इसी तर्ज पर ग्वालियर के विकलांग समूह ने सफलता की इबारत लिखी है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में अगरबत्ती उद्योग की स्थापना कर उन्होंने साबित कर दिया कि अगर कुछ करने की लगन व हिम्मत हो तो शारीरिक खामी भी छलांग लगाने से नहीं रोक सकती। सरकारी राजिंद्रा कॉलेज में शुरू हुए सरस मेले में आया ग्वालियर का श्री विकलांग बंधु सेवार्थ समूह की सफलता बताती है कि वह सामान्य लोगों से भी एक कदम आगे हैं। समूह अध्यक्ष कैलाश नारायण गुप्ता कहते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवार से संबंधित व 40 फीसदी विकलांग होने की वजह से वह ग्वालियर में मंदिर के बाहर पूजा-पाठ की सामग्री बेचते थे। वर्ष 2004 में किसी शरारती व्यक्ति ने उनके सामान को आग लगा दी। वह बैठे किस्मत व विकलांगता को कोस रहे थे कि वहां के डिप्टी कमिश्नर वसीम अख्तर ने उन्हें हिम्मत दी और अपना काम शुरु करने के लिए प्रेरित किया। विकलांगता को मात देने के लिए ग्वालियर के एक कॉलेज व उत्तर प्रदेश के सीतापुर से ट्रेनिंग लेकर उन्होंने 14 नवंबर 2005 को अगरबत्ती बनाने का काम शुरू किया। फिर दूसरे विकलांगों को साथ में जोड़ा। इस वक्त 17 विकलांग मिलकर इस समूह को चला रहे हैं। उनकी 8 छोटी इकाइयों में 250 लोग काम करते हैं। सरकार की पहल पर वह महिलाओं को स्वरोजगार के गुर भी सिखाएंगे। उक्त समूह के सदस्य घनश्याम कुशवाहा व रामकुमार प्रजापति कहते हैं कि अगरबत्ती उद्योग चलाने की बदौलत वर्ष 2005 में बीजेपी नेता सुषमा स्वराज, वर्ष 2007 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (रिटा.) भुवन चंद्र खंडूड़ी, वर्ष 2008 में नाबार्ड व राजस्थान सरकार और वर्ष 2010 में गुड़गांव में हरियाणा सरकार सम्मानित कर चुकी है।
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स्पेशल लगातार 72 घंटे जलती है अगरबत्ती
यह ग्रुप 108 इंच लंबी अगरबत्ती बनाकर और उसे 72 घंटे यानी 3 दिन व 3 रात जलाकर मिसाल कायम कर चुका है। वहीं, 32 इंच, 28, 18, 14 इंच की भी अगरबत्ती बनाते हैं। वे कुल 52 सुगंध वाली अगरबत्ती बनाते हैं। बठिंडा में वह 35 तरह की अगरबत्ती लाए हैं। इनमें गुलाब, चंदन, रजनीगंधा, लेवंडर, जूही, इंटीमेट, पुष्पराज, तुलसी, केसर, एलोविरा, मृगनयनी, गूगल, गंधकुमारी, मधुचंदन, मधुअमृत, पवन पुजारी, मधु फ्लेक्सो, मोगरा, मधुरपवन, साइनफ्लोरा, प्रभुदर्शन समेत कई तरह की खुशबू शामिल हैं।
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