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मनीष शर्मा, बठिंडा न लंबी-चौड़ी बहस और कानूनी पेचीदगी, न वकील का खर्चा, न तारीख पर तारीख.., बस मामला हाईकोर्ट के सामने और फैसला ऑन द स्पॉट। चौंकिए मत.! यह कोई सनी देओल मार्का हिंदी फिल्म का डायलॉग या सीन नहीं है। वास्तव में आपसी रजामंदी से गांव में चल रहे झगड़ों को हल करने वाली अनूठी हाईकोर्ट कुछ ऐसा ही काम कर रही है। बठिंडा से 16 किलोमीटर दूर नथाना रोड पर स्थित गांव पूहला बस स्टैंड के नजदीक यह हाईकोर्ट बैठती है। इसके जजों में कोई सेवामुक्त फौजी है तो कोई पंचायत सदस्य तो कोई सेवामुक्त पुलिस कर्मी। गांव के छोटे-मोटे झगड़े हों या आसपास होने वाले सड़क हादसे..! यह हाईकोर्ट अपने तरीके से इंसाफ देते हुए चुटकियों में फैसला सुना देती है। पिछले चार वर्ष तो यहां सांझी सत्थ (चौपाल) ही चलती थी, लेकिन यहां से मिलने वाले इंसाफ पर ग्रामीणों का भरोसा ही है कि उन्होंने छह माह पूर्व इसे गांव पूहला की हाईकोर्ट का नाम दे दिया। आपसी भाईचारे की बुनियाद पर बनी इस हाईकोर्ट की नींव इतनी मजबूत है कि आपराधिक मामलों में पुलिस भी मदद लेने से नहीं झिझकती। सेवामुक्त सूबेदार बलजीत सिंह, पूर्व पंचायत सदस्य सुरजीत सिंह, सेवामुक्त पुलिस कर्मी शमशेर सिंह, शेर सिंह, पूर्व फौजी जगराज सिंह, दर्शन सिंह बताते हैं कि भरपूर सिंह ने यहां पर त्रिवेणी (एक साथ नीम, पीपल व बरगद के पेड़) बनाई। तभी से लोग यहां पर आकर बैठते थे। 27 दिसंबर 2010 को भरपूर की मौत के बाद पंचायत व परिजनों ने मिलकर शेड बनवा दिया। पहले से ही न्याय की पीठ का रूप ले चुकी इस जगह को छह माह पूर्व एक अलग चबूतरा बनाकर उसे हाईकोर्ट का नाम दे दिया गया। जमीन का झगड़ा हल होने के बाद गांव के सुखजीत कहते हैं-हमने कभी नहीं सोचा था कि कई सालों से चला आ रहा विवाद यहां हल हो जाएगा। सुखजिंदर सिंह, गुरचरन सिंह, सुखमंदर सिंह, बूटा सिंह, करनैल सिंह, पूर्व सरपंच रणजीत सिंह कहते हैं कि गांव के दांपत्य विवाद, जमीन, पानी, मामूली कहासुनी जैसे छोटे-मोटे झगड़ों के दर्जनों मामले यहां निपटा चुके हैं। कहीं आसपास एक्सीडेंट के बाद लोग झगड़ने लगते हैं तो इस हाईकोर्ट में उपस्थित लोग बीचबचाव कर मामला हल करवा देते हैं। ग्रामीण भी भाईचारे की बुनियाद पर बनी हाईकोर्ट के फैसले का पूरा सम्मान करते हैं। कई बार छोटे विवाद के हल के लिए पुलिस भी उन तक पहुंच करती है। जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट राजन गर्ग कहते हैं कि सभी पंचायतें अपने स्तर पर ऐसे कदम उठाएं तो निसंदेह न्यायिक व्यवस्था पर बोझ घटेगा और तस्वीर दूसरी ही होगी। बटिंठा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. सुखचैन सिंह गिल भी इस मॉडल और जज्बे की तारीख करते नहीं थकते।
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