..मुझे आजादी दे दो!
मनीष शर्मा, बठिंडा
आदरणीय,स. प्रकाश सिंह बादल जी,
मुख्यमंत्री, पंजाब, चंडीगढ़।
मैं 80 वर्ष का सीनियर सिटीजन व स्वतंत्रता सेनानी हूं। मैंने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता का संग्राम लड़ा, लेकिन वर्तमान में मैं बहुत बीमार हूं तथा मेरे पास इलाज करवाने के लायक पैसे नहीं हैं। भगवान की कृपा से आपके पास तो सब साधन हैं या यूं कहें कि आप दूसरी खुदाई हैं, आपसे विनती है कि मेरी मुश्किलें हल करवाएं। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो मुझे इच्छामृत्यु यानी मरने की इजाजत दे दें, ताकि मैं जीवन के अंतिम दौर में किसी पर बोझ न बनूं और मुझे देख मौजूदा पीढ़ी स्वतंत्रता का आंदोलन लड़ने वालों के साथ होता सुलूक देख किसी जनांदोलन में कूदने से गुरेज करे। मुख्यमंत्री को गहरी पीड़ा से भरा यह पत्र नहीं यहां पुखराज कालोनी के एक छोटे से कमरे में गुजर-बसर कर रहे स्वतंत्रता सेनानी मास्टर मंगत राय ने लिखा है। पत्र में उन्होंने 13 वर्ष की अल्पायु में जंग-ए-आजादी में कूदकर सक्रिय भूमिका निभाने व आजादी के बाद मजदूरों-मुलाजिमों के लिए किए संघर्ष को तफसील से बयां किया है। कांपते शरीर, अटकती जुबां व फूलती सांसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हुए पुराने दिनों को याद कर चमकती आंखों से स्वतंत्रता सेनानी मास्टर मंगत ने दैनिक जागरण को बताया कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर छठी कक्षा में पढ़ते वक्त 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने बच्चा पार्टी गठित की। वर्ष 1945-46 में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का जोश से लबरेज भाषण सुनकर वह तन-मन से स्वतंत्रता की लड़ाई के योद्धा बन गए। 18 दिसंबर 2010 को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें सम्मानित भी किया। लेकिन, (थोड़ा सोचते हुए) सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर उनकी इतनी बेकद्री हो रही है कि बस रोने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है। आज वह सांस व पेट की बीमारी से चारपाई पकड़ चुके हैं। दवा खर्च की मांग पर प्रशासन चुप्पी साध गया। पेंशन के लिए आवेदन किया, लेकिन फाइल प्रशासनिक दरबार में अटकी है। बूढ़ी हड्डियों में इतनी जान नहीं है कि सरकारी बाबुओं व दफ्तरों के चक्कर काट सके। जिस बेटे अशोक कुमार के पास रहते हैं, उसकी आमदनी इतनी कम है कि उनके इलाज पर पूरा खर्चा नहीं कर पाता। सही तरीके से देखभाल न होने की वजह ऑपरेशन करवाई आंख को भी नुकसान पहुंच रहा है।
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